सौ दिन से जारी
धरने को हजार सलाम...
श्याम रुद्र पाठक को सलाम। जैसा जज्बा वो दिखा रहे हैं, उसे खाए-अघाए लोगों के बीच पागलपन कहने का चलन है। पाठक जी, बीते सौ दिनों से दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय के बाहर धरना दे रहे हैं। रोज सुबह पहुंच जाते हैं। पहले घंटे-दो घंटे में ही गिरफ्तार हो जाते थे, लेकिन उनकी लगन और सच्चाई देखकर पलिस वालों को भी शर्म आने लगी है। लिहाजा कई बार शाम तक बैठने को मिलता है, बशर्ते सोनिया गांधी या राहुल गांधी को वहां न आना हो। उनके आने पर पाठक जी नारे लगाते हैं जिसे रोकने के लिए, पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। जो भी हो, सौ दिन से रात रोज तुगलक रोड थाने में कट रही है। 24 घंटा होने के पहले पुलिस छोड़ देती है, वरना कोर्ट-कचहरी का लफड़ा फंस सकता है। जो तस्वीर मैंने इंटरनेट से हासिल करके यहां पोस्ट की है, उसमे वे कुछ जवान लग रहे हैं। सच्चाई ये है कि इस समय उनके चेहरे पर लंबी खिचड़ी दाढ़ी लहरा रही है।
श्याम जी की मांग है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं को भी जगह दी जाए। अभी सिर्फ अंग्रेजी देवी ही न्याय करती हैं। तमाम तकनीकी अड़ंगों के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश ने कुछ छूट हासिल की है, जहां के उच्च न्यायालयों में, बेहद सीमित अर्थों में हिंदी का उपयोग हो सकता है। श्यामरुद्र इस परिपाटी की बदलना चाहते हैं ताकि आम लोग जान सकें कि उनका वकील उनकी तकलीफ का कैसा बयान अदालत में कर रहा है, क्या दलील दे रहा है और मुंसिफ महोदय का न्याय किन तर्कों पर आधारित है।
मेरी नजर में ये मांग भारत मे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए है, उसे सार्थक बनाने के लिए है। दुनिया का कौन सा देश होग जहां जनता को न्याय जनता की भाषा में नहीं दिया जाता है। न..न..इसे हिंदी थोपने का षड़यंत्र न मानें। श्यामरुद्र जी इसे भारतीय भाषाओं का मोर्चा मानते हैं। यानी मद्रास हाईकोर्ट में तमिल में काम हो और बंबई हाईकोर्ट में मराठी में। इसी तरह यूपी सहित सभी हिंदी प्रदेशों में हिंदी मे हो। सुप्रीम कोर्ट में भी हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं को जगह मिले। त्रिभाषा फार्मूले को लागू किय जा सकता है। मैं समझता हूं कि ऐसा जाए तो जिले का वकील भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच सकेगा और 5-10 लाख रुपये प्रति पेशी वसूलने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। धीरे-धीरे ये बात लोगों को समझ में आ रही है। कांग्रेस महासचिव आस्कर फर्नांडिज ने उनके ज्ञापन को गंभीर मानते हुए सितंबर में तत्कालीन कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को पत्र लिखा था। ये अलग बात है कि नतीजा ठाक के तीन पात वाला रहा।
बहरहाल, श्यामरुद्र पाठक के दिमाग में भाषा का मसला किसी सनक की तरह नहीं उठा है। उन्होंने 1980 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में टॉप किया था। फिर, आईआईटी दिल्ली के छात्र हुए लेकिन बी.टेक के आखिरी साल का प्रोजेक्ट हिंदी में लिखने पर अड़ गए। संस्थान ने डिग्री देने से मना कर दिया। श्याम जी भी अड़ गए। मामला संसद में गूंजा तो जाकर कहीं बात बनी। लेकिन इंजीनियर बन चुके श्यामरुद्र पाठक के लिए देश विदेश मे पैसा कमाना नहीं, देश की गाड़ी को भारतीय भाषाओं के इंजन से जोड़ना ही सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया।.. 1985 में उन्होंने भारतीय भाषाओं में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा कराने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। तमाम धरने-प्रदर्शन के बाद 1990 में ये फैसला हो पाया। अब उन्होंने भारतीय अदालतों को भारतीय भाषाओं से समृद्ध करने का बीड़ा उठाया है।...सौ दिन से थाने में रात काटने वाले श्यामरुद्र पाठक जिस सवेरे के लिए लड़ रहे हैं उसका इंतजार 95 फीसदी भारतीयों को शिद्दत से है। समर्थन देना इतिहास की मांग है। देंगे न..?
श्याम रुद्र पाठक को सलाम। जैसा जज्बा वो दिखा रहे हैं, उसे खाए-अघाए लोगों के बीच पागलपन कहने का चलन है। पाठक जी, बीते सौ दिनों से दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय के बाहर धरना दे रहे हैं। रोज सुबह पहुंच जाते हैं। पहले घंटे-दो घंटे में ही गिरफ्तार हो जाते थे, लेकिन उनकी लगन और सच्चाई देखकर पलिस वालों को भी शर्म आने लगी है। लिहाजा कई बार शाम तक बैठने को मिलता है, बशर्ते सोनिया गांधी या राहुल गांधी को वहां न आना हो। उनके आने पर पाठक जी नारे लगाते हैं जिसे रोकने के लिए, पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। जो भी हो, सौ दिन से रात रोज तुगलक रोड थाने में कट रही है। 24 घंटा होने के पहले पुलिस छोड़ देती है, वरना कोर्ट-कचहरी का लफड़ा फंस सकता है। जो तस्वीर मैंने इंटरनेट से हासिल करके यहां पोस्ट की है, उसमे वे कुछ जवान लग रहे हैं। सच्चाई ये है कि इस समय उनके चेहरे पर लंबी खिचड़ी दाढ़ी लहरा रही है।
श्याम जी की मांग है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं को भी जगह दी जाए। अभी सिर्फ अंग्रेजी देवी ही न्याय करती हैं। तमाम तकनीकी अड़ंगों के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश ने कुछ छूट हासिल की है, जहां के उच्च न्यायालयों में, बेहद सीमित अर्थों में हिंदी का उपयोग हो सकता है। श्यामरुद्र इस परिपाटी की बदलना चाहते हैं ताकि आम लोग जान सकें कि उनका वकील उनकी तकलीफ का कैसा बयान अदालत में कर रहा है, क्या दलील दे रहा है और मुंसिफ महोदय का न्याय किन तर्कों पर आधारित है।
मेरी नजर में ये मांग भारत मे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए है, उसे सार्थक बनाने के लिए है। दुनिया का कौन सा देश होग जहां जनता को न्याय जनता की भाषा में नहीं दिया जाता है। न..न..इसे हिंदी थोपने का षड़यंत्र न मानें। श्यामरुद्र जी इसे भारतीय भाषाओं का मोर्चा मानते हैं। यानी मद्रास हाईकोर्ट में तमिल में काम हो और बंबई हाईकोर्ट में मराठी में। इसी तरह यूपी सहित सभी हिंदी प्रदेशों में हिंदी मे हो। सुप्रीम कोर्ट में भी हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं को जगह मिले। त्रिभाषा फार्मूले को लागू किय जा सकता है। मैं समझता हूं कि ऐसा जाए तो जिले का वकील भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच सकेगा और 5-10 लाख रुपये प्रति पेशी वसूलने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। धीरे-धीरे ये बात लोगों को समझ में आ रही है। कांग्रेस महासचिव आस्कर फर्नांडिज ने उनके ज्ञापन को गंभीर मानते हुए सितंबर में तत्कालीन कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को पत्र लिखा था। ये अलग बात है कि नतीजा ठाक के तीन पात वाला रहा।
बहरहाल, श्यामरुद्र पाठक के दिमाग में भाषा का मसला किसी सनक की तरह नहीं उठा है। उन्होंने 1980 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में टॉप किया था। फिर, आईआईटी दिल्ली के छात्र हुए लेकिन बी.टेक के आखिरी साल का प्रोजेक्ट हिंदी में लिखने पर अड़ गए। संस्थान ने डिग्री देने से मना कर दिया। श्याम जी भी अड़ गए। मामला संसद में गूंजा तो जाकर कहीं बात बनी। लेकिन इंजीनियर बन चुके श्यामरुद्र पाठक के लिए देश विदेश मे पैसा कमाना नहीं, देश की गाड़ी को भारतीय भाषाओं के इंजन से जोड़ना ही सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया।.. 1985 में उन्होंने भारतीय भाषाओं में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा कराने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। तमाम धरने-प्रदर्शन के बाद 1990 में ये फैसला हो पाया। अब उन्होंने भारतीय अदालतों को भारतीय भाषाओं से समृद्ध करने का बीड़ा उठाया है।...सौ दिन से थाने में रात काटने वाले श्यामरुद्र पाठक जिस सवेरे के लिए लड़ रहे हैं उसका इंतजार 95 फीसदी भारतीयों को शिद्दत से है। समर्थन देना इतिहास की मांग है। देंगे न..?
Shyam Rudra Pathak
is the real Hero of the society “Unsung Heroes in India” Group salute her. :-)
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