लीलावती - the real Hero of the society
ये हैं लीलावती,
जो उरई में सब्जी बेचने का काम करती हैं. इनकी उम्र ६१ वर्ष की है.
इनकी संघर्ष की कहानी अपने आपमें अनूठी कही जा सकती है.
इनका बाल विवाह हुआ था, जनपद झाँसी के एक गाँव में. विवाह के कुछ वर्षों के बाद इनके पति ने
इन्हें छोड़ दिया. तब तक इनकी चार संतानें - तीन पुत्रियाँ और एक पुत्र- हो चुकी
थी. पति द्वारा छोड़ देने के बाद इनके ससुराल वालों ने भी इनका ख्याल नहीं रखा.
अपने भाई की मदद से इन्होने उरई की गल्ला मंडी में चालीस रुपये रोज पर काम करना
शुरू किया. पाँच सदस्यों वाले परिवार का जीवन-यापन मुश्किल देख लीलावती ने गल्ला
मंडी में काम करने के साथ-साथ चावल के पापड़ बना, घूम-घूम कर
बेचना भी शुरू किया. इससे भी उनकी आमदनी में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई. चावल
बेचने के बाद भी आमदनी में मात्र दस रुपये रोज की वृद्धि हुई.
हौसला न खोने वाली लीलावती ने आज से लगभग
१७ वर्ष पूर्व सब्जी बेचने का काम किया. इस काम से धीरे-धीरे उनकी आमदनी में
वृद्धि होने लगी. अपने इस संघर्ष में भी उन्होंने अपनी संतानों को शिक्षित करने में
कसर नहीं रखी. सभी को साक्षर बनाने के साथ-साथ सभी के विवाह की जिम्मेवारी का भी
सफल निर्वहन किया. लीलावती ने अपनी तीनों पुत्रियों में से पहली दो का विवाह
दिल्ली में और सबसे छोटी का विवाह कानपुर में किया.
आज लीलावती का बेटा भी उनके साथ काम में
हाथ बंटाता है. इतने वर्षों की एक और उपलब्धि लीलावती मानती हैं कि आज वे अपना नाम
लिखना सीख गईं हैं और निरंतर साक्षर होने की दिशा में भी प्रयासरत हैं.
उनकी इस संघर्ष की कहानी को जानने के बाद
इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कालपी कॉलेज कालपी द्वारा लीलावती को
सम्मानित किया गया.
Lilawati is
the real Hero of the society “Unsung Heroes in India” Group salutes him. :-)
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