Thursday 18 April 2013

अल्का सारना - Real Hero in India

Courtesy Gaon Connection News Paper:

जयपुर से तकरीबन 120 किलोमीटर दूर रुपनगढ़ ग्रामपंचायत में रहने वाली स्वास्थ्य कार्यकर्त्री (आशा), अल्का सारना रोज हाथों में मोबाईल फोन लेकर अपने गांव की महिलाओं के घर जाती हैं। घरों में मौजूद महिलाओं को अपने पास बैठाकर वो मोबाईल के कीपैड पर कुछ बटन दबाना शुरु करती हैं। थोड़ी ही देर में बारी बारी से मोबाईल पर एक आवाज़ इन महिलाओं से गर्भावस्था के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों, ज़रुरतों और खुराक जैसे विषयों से जुड़े सवाल जवाब करने लगती है।

जयपुर से अजमेर की तरफ जाने वाले हाईवे एनएच 8 पर लगभग 110 किलोमीटर चलने पर एक सड़क किशनगढ़ की तरफ मुड़ जाती है। हनुमानगढ़ मेगा हाईवे नाम की इस सड़क पर तकरीबन 10 किलोमीटर दूर है रुपनगढ़ ग्राम पंचायत।

रुपनगढ़ पंचायत की सभी 70 आशा कार्यकर्त्रियों के पास इसी तरह के मोबाईल फोन हैं जिनके ज़रिये ये आशाएं ग्रामीण महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद ध्यान में रखने वाली बातों की जानकारी देती हैं। जून 2011 से मोबाईल स्वास्थ्य सेवा के अन्तर्गत शुरु की गई इस मोबाईल सेवा ने आशा कार्यकत्रियों को जानकारी देने के लिये जैसे एक हथियार दे दिया हो। अब तक ग्रामपंचायत के साढ़े तीन हज़ार से ज्यादा गर्भवती महिलाओं और बच्चों को इस मोबाईल स्वास्थ्य सेवा का लाभ मिल चुका है।

लगभग डेढ़ साल से मोबाईल हेल्थ सेवा के तहत गर्भवती महिलाओं को ट्रेनिंग दे रही आशा कार्यकर्त्री अल्का सारना कहती हैं, "जून 2011 में पहली बार हमें दो दिन की ट्रेनिंग दी गई। इन दो दिनों में ही हमने मोबाईल से जानकारी देना सीख लिया। पहले दिमाग में सोचकर जाना पड़ता था कि महिलाओं से ये कहेंगे, ऐसे समझाएंगे। बताते हुए कुछ चीज़ें भूल भी जाते थे। पर अब ये सारी जानकारियां मोबाईल पर मौजूद हैं। अब याद रखने का झंझट नहीं है। "

रुपनगढ़ पंचायत में शुरुआत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर केवल 10 आशा कार्यकर्त्रियों को इस कार्यक्रम से जोड़ा गया। सेव द चिल्ड्रन द्वारा की गई इस पहल की सफलता को देखते हुए ग्रामपंचायत के प्रतिनिधियों से इस पहल को सहयोग मिला और धीरे धीरे मोबाईल से जानकारी देने का ये तरीका पूरी ग्राम पंचायत में लोकप्रिय हो गया।

गांवों में की गई इस पहल के बाबत सेव द चिल्ड्रन से जुड़े नीरज जुनेजा बताते हैं, "रुपनगढ़ पंचायत के 28 गांवों में हमारा मोबाईल हैल्थ सेवा का प्रोजेक्ट चल रहा था। शुरुआत में हमने 10 आशाएं चुनी और उन्हें गांव की महिलाओं को मोबाईल से कैसे जानकारी दी जाये इसका प्रशिक्षण दिया। गांवों मे लोगों को कांउन्सिलिंग की बड़ी ज़रुरत होती है। हमने सोचा कि तकनीक का प्रयोग करके उनकी काउंसिलिंग की जाये। इसके लिये हमने दिमागी नाम की सौफ्टवेयर बनाने वाली कम्पनी से सम्पर्क किया। उन्होंने हमारे लिये एक सौफ्टवेयर बनाया। इस सौफ्टवेयर के ज़रिये कुछ चुनी हुई कम्पनियों के मोबाईल फोन पर गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद महिलाओं को क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिये, खान पान, साफ सफाई का किस तरह से ध्यान रखना चाहिये आदि सभी ज़रुरी जानकारियां स्थानीय भाषा में सुनी जा सकती हैं। साथ ही गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण एवं बच्चे के जन्म के पंजीकरण का काम भी इस सौफ्टवेयर की मदद से मोबाईल के ज़रिये घर बैठे किया जा सकता है।"

नीरज आगे बताते हैं "ये तरीका इसलिये भी लोकप्रिय हुआ क्योंकि इसमें आने वाला खर्च लगभग ना के बराबर है। तकरीबन 2700-2800 रुपये मोबाईल का खर्च होता है।सभी 70 आशाओं को हमने ये मोबाईल मुफत में दिये। हम हर महीने 50 रुपये का रीचार्ज इन मोबाईल पर करवा देते थे। हांलाकि इस साफटवेयर के प्रयोग पर फोन में आने वाला अतिरिक्त खर्च 10 रुपये से ज्यादा नहीं होता।"

राजस्थान की नुआ पंचायत के कल्याणीपुरा गांव की आशा सुमित्रा देवी ने 23 जनवरी 2012 को पहली बार मोबाईल हैल्थ कार्यक्रम की टेªनिंग ली। सुमित्रा कहती हैं, "अपने साथ की आशा को पहली बार मोबाईल पर रजिस्ट्रेशन करते हुए देखा तो बहुत मुश्किल लगा। समझ नहीं आ रहा था कि इसमें नाम कैसे एड करते होंगे। इससे पहले मेरे पास अपना मोबाईल भी नहीं था। पति के मोबाईल से कभी कभार फोन कर लेती थी। पर अब तो मोबाईल से औरतों को समझाते हुए अच्छा लगता है। अब औरतों को समझाने के लिए किताबें रजिस्टर वगैरह ले जाने की ज़रुरत नहीं पड़ती। "

ये सब बताते हुए सुमित्रा का आत्मविश्वास देखते बनता है। वो मुस्कुराते हुए आगे कहती हैं, "अब तो मोबाईल हथियार जैसा लगता है। इसमें फोटो भी आती हैं और सारी जानकारी राजस्थानी भाषा में ही है। मैं रोजाना कम से कम 10 घरों में लोगों को जागरुक करने जाती हूं और इसका फायदा ये हुआ कि पिछले दो सालों में कोई भी डिलीवरी घर में नहीं हुई है। "

रुपनगढ़ पंचायत की ही एक अन्य आशा योगिता सेन बताती हैं," मोबाईल पर अपनी भाषा में सारी डीटेल होती हैं इसलिये अब हमें समझाने में आसानी हो जाती है। मोबाईल से आवाज़ आती है तो लगता है कोई बड़ा आदमी समझा रहा है इसलिये लोग मोबाईल से मिलने वाली जानकारी को ज्यादा गम्भीरता से लेते हैं।"

रुपनगढ़ के गाँव की गर्भवती महिला शबाना बानो 25, मोबाईल हेल्थ सेवा नाम के इस कार्यक्रम से बहुत खुश हैं। "बीमारियों से बचने के लिए लगने वाले टीके, आइरन की गोलियों आदि की जानकारी आदि हमें आशा ने मोबाईल से ही दी। मोबाईल में अच्छी अच्छी फोटो भी होती हैं जिससे जल्दी समझ में भी आ जाता है। घर में जब आशा ने हमें जानकारी दी तो सासू ने भी सुना और जब डाक्टर के पास गये तो उनहोने खुद उनसे आईरन की गोलियां देने को कहा। आशा ने ही हमें बताया मां के खून से ही बच्चा बनता है। पहले हम उतना ध्यान नहीं देते थे। मोबाईल पर सुना तो ज्यादा ध्यान रखने लगे हैं।"शबाना बताती हैं।

मोबाईल की मदद से शुरु हुई इस सेवा से जानकारियां देने का तरीका तो मनोरंजक हुआ ही, एक और फायदा ये हुआ कि घर बैठे आशा कार्यकर्त्रियां, गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों का पंजीकरण करने लगी। रुपनगढ़ के पंचायत प्रतिनिधि राकेश टंडन बताते हैं, "फोन पर गर्भवती महिलाओं का रजिस्टेशन करते ही उनका सारा डेटा हमारे पास आ जाता है। पहले मां और पिता दोनों इस बात से अंजान थे कि गर्भावस्था के दौरान क्या क्या ज़रुरतें होती हैं। गांव में सस्थागत प्रसव नहीं होते थे। दाईयां अपने आप ही प्रसव करवा देते थे। पहले इस बात के भी कोई आंकणे नहीं रहते थे कि कितनी महिलाएं गर्भवती हैं जिन्हें मदद की ज़रुरत हो सकती है। लेकिन मोबाईल हेल्थ कार्यक्रम शुरु करने के बाद हमारे पास आंकड़े रहने लगे। इस कार्यक्रम के बाद मां और आशा कार्यर्कियों दोनों में जागरुकता को लेकर उत्साह काफी बढ़ गया। उनमें एक उम्मीद जगी कि अगर आज उन्हें मोबाईल के जरिये जानकारियां मिल रही हैं तो आने वाले समय में उन्हें और भी सुविधाएं मिलेंगी।"

ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी समस्या यहां रहने वाली घुमक्कड़ जातियों की गर्भवती महिलाओं के पंजीकरण की भी है। इस वजह से इन जातियों की कितनी महिलाएं गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य सम्बंधी तकलीफों से जूझती हुई अपनी जान गवां देती हैं इसकी कोई जानकारी तक नहीं हो पाती। मोबाईल स्वास्थ्य सेवा के शुरु होने के बाद इन जातियों के पंजीकरण में भी मदद मिली। राकेश टंडन बताते हैं "राजस्थान के गांवों में बंजारा, भाट, नट जैसी कई घुमक्कड़ जातियां रहती हैं जिनमें आज भी टीकाकरण आदि के लिये जागरुकता ना के बराबर है। घुमक्कड़ होने की वजह से उनका रजिस्टेशन नहीं हो पाता था। इसी तरह यहां का राव समाज भिक्षावृत्ति करता है। ये लोग एक जगह से दूसरी जगह जाकर लोगों को उनकी वंशावलियां पढ़कर सुनाने का काम करते हैं। हमने इन सारे लोगों को मोर्बाइअल हेल्थ कार्यक्रम से जोड़ा। इन लोगों से उनके मोबाईल नम्बर लिये और कहा कि जहां भी जांए बताकर जाएं। ताकि ज़रुरत पड़ने पर इनसे सम्पर्क किया जा सके और ये जहां भी हों उन्हें ज़रुरी मदद पहुंचाई जा सके।"

रुपनगढ़ की ही आशा कार्यकत्र्री कंचन चेपा मोबाईल के लिये बुजुर्ग महिलाओं के उत्साह से जुड़े अपने अनुभव को याद करती हुई कहती हैं, "अब हम लोगों के घरों में जाती हैं तो घरों की बुजुर्ग महिलाएं हमारे पास आकर कहती हैं तुम्हारे मोबाईल में क्या है हमें भी दिखाओ। उन्हें लगता है कि मोबाईल के अन्दर से जैसे खुद डाक्टर उनसे बात कर रहा हो। "

वहीं मोबाईल पर आये इस सोफ्टवेयर ने घर के पुरुषों के रवैये को भी बदला है। पहले जो पुरुष जो सोचते थे कि आशाओं के द्वारा दी गई जानकारी से उनका कोई सरोकार नहीं है, अब वो भी इस जानकारी में रुचि लेने गलगे हैं। आशा कार्यकर्त्री मांगी देवीबताती हैं, "पहले हम जानकारी देने जाते थे तो तो आदमी पास में नहीं बैठते थे। उन्हें हमारी बातों से कोई मतलब ही नहीं था लेकिन जबसे मोबाईल पर जानकारी देना शुरु किया तो अब औरत की सास के साथ साथ उसके पति और ससुर भी साथ में बैठकर सुनते हैं।"

Alka Sarna "Unsung Heroes in India" Group salutes you, your efforts will create a positive milestone towards girls in society. :-)
 

2 comments:

  1. बहुत ही उम्दा कार्य है

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  2. Mr. Anil Kumar Reja is serving as a Deputy Superintending Engineer (Production) at the Ahmedabad Asset of ONGC. What sets him apart from others is his passion for performing street plays and stage shows. For his theater group Hum Log all the world’s a stage and so are the streets. The group has enacted more than 100 street plays and stage shows till now spreading awareness among masses about social problems like AIDS, dowry system, untouchability, terrorism, et al in urban as well as rural Gujarat and other parts of the country. Mr. Reja took to theater after the sudden demise of his beloved mother in 1994, which shook him to the roots, and is channelizing all his creative energy towards promoting the cause of theater, a fast diminishing popular form of entertainment.



    How did you get interested in performing street plays?
    Even as a growing child, 8-10 years old, the society at large, the divide between the rich and the poor, ups and downs in life that my family underwent and things like that are deeply etched in my memory. Some of my childhood friends could not afford to pay school fees and became rickshaw pullers or daily-wage earners; while some went on to become professionals like engineers, doctors, managers, etc.
    The prayers of my well-wishers, especially my mother and grandmother, didn’t go in vain, and I got the job offer from ONGC; I joined as Junior Engineer (Production) on 31st October 1984 at Kalol GGS-I, Ahmedabad. My whole life underwent a transformation after that. I could provide a decent education to both my younger brothers, who have completed their diploma in civil engineering, and marry off my only sister, and all my siblings are well settled in life.

    Can you recount for us an unforgettable experience in your life?

    Yes, I can never forget the 3rd of January 1994 in my whole life. That was the day my mother, who means so much to me, departed from this world. The loss of my beloved mother, who was the supreme source of strength for me in life, made me feel miserable and all alone.

    So, you took to theater after your mother’s demise?

    Yes, I clawed my way back to normal life thanks to this ‘world of drama’. It sustained me and provided me with the required strength, power and confidence, and an even greater zeal to communicate with people through theater activities. I plunged headlong into theater activities, which keeps me ticking in my life. We’ve completed more than 100 street plays and stage shows till now in Ahmedabad and other parts of the country. I was one of the team members of the Regional Cultural Meet held at Dehra Dun on ONGC Day 2000. We’re Runners-up representing the then WRBC and the now WOBU. We received the trophy from the then C&MD Mr. B C Bora.

    Who are the people who encouraged you in this endeavor?

    I wish to take this occasion to convey my heart-felt thanks to all my creative friends of Ahmedabad Asset and, especially, Mr. A K Gehlot, DGM (P), who has always encouraged me to unleash my creative energy. I’d be greatly honored if our honorable C&MD Mr. Subir Raha, who has a reputation of being a big patron of Indian culture and tradition, provides patronage to our theater group Hum Log in the days to come.

    What would you like to say in conclusion?

    I’ve no hesitation in saying that whatever I’m today is because of my job with ONGC, and I’m proud to call myself an ONGCian. I’ve no doubt in my mind that ONGC, under C&MD Rahaji, will achieve global leadership in oil sector in the years to come.ONGC Reports has come up in a big way in the last two years, and I feel happy to be featured on ONGC’s internal web site. Thank you.
    Warm regards
    Anil Kumar reja

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