Saturday, 27 April 2013

ग्रामीण युवा के संघर्ष की उड़ान : कृष्ण विश्नोई



"ग्रामीण युवा के संघर्ष की उड़ान ...." ठेठ ग्रामीण अंचल के युवा कृष्ण विश्नोई ने दूध बेचकर प्रारंभिक पढाई की और 8 वी कक्षा में 92 प्रतिशत प्राप्त किये ..हिंदी मीडियम से होने का मखौल उड़ाकर कई स्कूलों ने एड मिशन से भी मना कर दिया लेकिन गाँव के इस छोरे ने हार ना मानते हुए अपना संघर्ष जारी रखा कई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने वाले धोरी मन्ना के कृष्ण विश्नोई अब पेरिस स्कूल ऑफ़ इंटर नेशनल सेक्युरिटी में मास्टर डिग्री करेंगे ,वे 19 साल के है और इस यूनिवर्सिटी में स्कोलरशिप लेने वाले सबसे युवा भारतीय है!


Sampat Pal Devi, Unsung Heroes in India Group Salute You


Mrs. Sampat Pal Devi and members of the Gulabi (pink) Gang, is a group of several hundred vigilante women in India, committed to protecting women against social malpractice, corrupt administrators, and abusive husbands.

You must have seen her in TV Serial “Big Boss”, Unsung Heroes in India Group Salute Her.

 

 Sampat was married off at the age of 12 to an ice-cream vendor and had the first of her five children at 15. The gulabis, whose members say they are a "gang for justice," started in 2006 as a sisterhood of sorts that looked out for victims of domestic abuse, a problem the United Nations estimates affects two in three married Indian women. Named after their hot-pink sari uniforms, the gang paid visits to abusive husbands and demanded they stop the beatings. When obstinate men refused to listen, the gulabis would return with large bamboo sticks called laathis and "persuade" them to change their ways. "When I go around with a stick, it's to make men fear me. I don't always use it, but it helps change the mind of men who think they are more powerful than me" says Sampat. She has assumed the rank of commander in chief and has appointed district commanders across seven districts in Bundelkhand to help coordinate the gang's efforts.

Sampat's group now has more than 20,000 members, and the number is growing. Making her way from one far-flung village to another on an old rusty bicycle, she holds daily gatherings under shady banyan trees, near makeshift tea-stalls selling the sweet Indian drink chai and other popular village hangouts to discuss local problems and attract new recruits.

Sampat has a long list of criminal charges against her, including unlawful assembly, rioting, attacking a government employee, and obstructing an officer in the discharge of duty, and she even had to go into hiding.Her feistiness has secured notable victories for the community, however. In 2008, the group ambushed the local electricity office, which was withholding electricity until members received bribes or sexual favors in return for flicking the switch back on. The stick-wielding gulabi stormed the company grounds and proceeded to rough up the staff inside the building. An hour later, the power was back on in the village.

While the gulabi use a mild level of force, more violent strains of vigilantism have been reported elsewhere in India among dispossessed women. In 2004, a mob of hundreds of women hacked to death the serial rapist and murderer Akku Yadav, after the courts failed to convict him over a period of 10 years. After the deed was done, the women collectively declared their guilt in the murder, frustrating police efforts to charge anyone with the crime. This kind of violence has generated concern among some Indian commentators, who say that while many vigilantes have noble intentions, too many of them are brutally violent.

Unsung Heroes in India Group salutes This couple

सपने उनके होते हैं, जिनके सपनों में जान होती है. 
पंख होने से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है 


This couple lives in Indra Nagar Colony, Jodhpur (Rajasthan), wife Mrs. Manju Chauhan is unable to walk, she is graduate and working in MDM Hospital as Computer Operator, Husband Mr. Daulatraj Chauhan is unable to watch, he brings his wife her office everyday on his shoulders, during journey Manju guide him by watching on Road, Daulatraj also does small works for livelihood. Both of them are living independent life without the support from others.

“Unsung Heroes in India” Group salutes both of them.

सौ दिन से जारी धरने को हजार सलाम...Shyam Rudra Pathak




सौ दिन से जारी धरने को हजार सलाम...

श्याम रुद्र पाठक को सलाम। जैसा जज्बा वो दिखा रहे हैं, उसे खाए-अघाए लोगों के बीच पागलपन कहने का चलन है। पाठक जी, बीते सौ दिनों से दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय के बाहर धरना दे रहे हैं। रोज सुबह पहुंच जाते हैं। पहले घंटे-दो घंटे में ही गिरफ्तार हो जाते थे, लेकिन उनकी लगन और सच्चाई देखकर पलिस वालों को भी शर्म आने लगी है। लिहाजा कई बार शाम तक बैठने को मिलता है, बशर्ते सोनिया गांधी या राहुल गांधी को वहां न आना हो। उनके आने पर पाठक जी नारे लगाते हैं जिसे रोकने के लिए, पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाता है। जो भी हो, सौ दिन से रात रोज तुगलक रोड थाने में कट रही है। 24 घंटा होने के पहले पुलिस छोड़ देती है, वरना कोर्ट-कचहरी का लफड़ा फंस सकता है। जो तस्वीर मैंने इंटरनेट से हासिल करके यहां पोस्ट की है, उसमे वे कुछ जवान लग रहे हैं। सच्चाई ये है कि इस समय उनके चेहरे पर लंबी खिचड़ी दाढ़ी लहरा रही है।

श्याम जी की मांग है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में भारतीय भाषाओं को भी जगह दी जाए। अभी सिर्फ अंग्रेजी देवी ही न्याय करती हैं। तमाम तकनीकी अड़ंगों के साथ राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश ने कुछ छूट हासिल की है, जहां के उच्च न्यायालयों में, बेहद सीमित अर्थों में हिंदी का उपयोग हो सकता है। श्यामरुद्र इस परिपाटी की बदलना चाहते हैं ताकि आम लोग जान सकें कि उनका वकील उनकी तकलीफ का कैसा बयान अदालत में कर रहा है, क्या दलील दे रहा है और मुंसिफ महोदय का न्याय किन तर्कों पर आधारित है।

मेरी नजर में ये मांग भारत मे लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए है, उसे सार्थक बनाने के लिए है। दुनिया का कौन सा देश होग जहां जनता को न्याय जनता की भाषा में नहीं दिया जाता है। न..न..इसे हिंदी थोपने का षड़यंत्र न मानें। श्यामरुद्र जी इसे भारतीय भाषाओं का मोर्चा मानते हैं। यानी मद्रास हाईकोर्ट में तमिल में काम हो और बंबई हाईकोर्ट में मराठी में। इसी तरह यूपी सहित सभी हिंदी प्रदेशों में हिंदी मे हो। सुप्रीम कोर्ट में भी हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं को जगह मिले। त्रिभाषा फार्मूले को लागू किय जा सकता है। मैं समझता हूं कि ऐसा जाए तो जिले का वकील भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच सकेगा और 5-10 लाख रुपये प्रति पेशी वसूलने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। धीरे-धीरे ये बात लोगों को समझ में आ रही है। कांग्रेस महासचिव आस्कर फर्नांडिज ने उनके ज्ञापन को गंभीर मानते हुए सितंबर में तत्कालीन कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को पत्र लिखा था। ये अलग बात है कि नतीजा ठाक के तीन पात वाला रहा।

बहरहाल, श्यामरुद्र पाठक के दिमाग में भाषा का मसला किसी सनक की तरह नहीं उठा है। उन्होंने 1980 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा में टॉप किया था। फिर, आईआईटी दिल्ली के छात्र हुए लेकिन बी.टेक के आखिरी साल का प्रोजेक्ट हिंदी में लिखने पर अड़ गए। संस्थान ने डिग्री देने से मना कर दिया। श्याम जी भी अड़ गए। मामला संसद में गूंजा तो जाकर कहीं बात बनी। लेकिन इंजीनियर बन चुके श्यामरुद्र पाठक के लिए देश विदेश मे पैसा कमाना नहीं, देश की गाड़ी को भारतीय भाषाओं के इंजन से जोड़ना ही सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया।.. 1985 में उन्होंने भारतीय भाषाओं में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा कराने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। तमाम धरने-प्रदर्शन के बाद 1990 में ये फैसला हो पाया। अब उन्होंने भारतीय अदालतों को भारतीय भाषाओं से समृद्ध करने का बीड़ा उठाया है।...सौ दिन से थाने में रात काटने वाले श्यामरुद्र पाठक जिस सवेरे के लिए लड़ रहे हैं उसका इंतजार 95 फीसदी भारतीयों को शिद्दत से है। समर्थन देना इतिहास की मांग है। देंगे न..?


Shyam Rudra Pathak is the real Hero of the society “Unsung Heroes in India” Group salute her. :-)