Wednesday 22 May 2013

अमिल्कर कबराल - राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन संघर्ष के अगुआ



पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ के मुक्ति आंदोलन के नेता अमिल्कर कबराल का जन्म 12 सितंबर 1924 को बफाता नामक कस्बे में हुआ था। 1945 में उन्होंने कृषि विज्ञान की शिक्षा के लिए लिस्बन स्थित संस्थान में प्रवेश किया और 1952 में वहां से डिग्री हासिल की। उन दिनों अंगोला, मोजांबीक और गिनी बिसाऊ में पुर्तगाल का शासन था। छात्र जीवन के दौरान कबराल ने पुर्तगाल में जनतांत्रिक शक्तियों के साथ संपर्क किया और वहां के जनतांत्रिक आंदोलन में भूमिगत रूप से सक्रिय रहे। 1953 में स्वदेश लौटने पर राजधनी बिसाऊ में उन्हें कृषि इंजीनियर की नौकरी मिली। यहां भी उनकी राजनीतिक गतिविधियाँ जारी रहीं और 1955 में उन्हें सरकार विरोधी होने का आरोप लगाकर नौकरी से निकाल दिया गया और देश छोड़ने का भी हुक्म हुआ। 1955-56 में अंगोला में उन्हें एक नौकरी मिली जहां अंगोला के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता अगोस्तिनो नेतो से मुलाकात हुई। कबराल ने अंगोला की मुक्ति के लिए बने संगठन एमपीएलए की स्थापना में नेतो की मदद की। सितंबर 1956 में कबराल ने गिनी बिसाऊ और केप वेर्दे की आजादी के लिए पीएआईजीसी नामक संगठन की स्थापना की और 1960 से सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत कर दी। 20 जनवरी 1973 को पुर्तगाल द्वारा नियुक्त भाड़े के सैनिकों ने कबराल की हत्या की।

अब तक राजनीतिक और सैनिक दृष्टि से कबराल ने अपने संगठन को इतना शक्तिशाली बना दिया था कि पुर्तगाली शासकों के लिए अध्कि समय तक गिनी में टिके रहना संभव नहीं था। सितंबर 1973 में गिनी बिसाऊ को पूर्ण आजादी मिल गई।

अमिल्कर कबराल ने साहित्य और संस्कृति से संबंधित प्रश्नों पर बहुत विस्तार से लिखा है और राजनीतिज्ञ के साथ-साथ एक संस्कृतिकर्मी के रूप में भी उनको सारी दुनिया में सम्मान प्राप्त है। कबराल का कहना है कि कोई भी जनता जो विदेशी प्रभुत्व से अपने को मुक्त कराती है सांस्कृतिक दृष्टि से भी तभी स्वतंत्रता पा सकती है जब उत्पीड़क देश तथा अन्य देशों की संस्कृति के सकारात्मक तत्वों को बिना किसी हिचक और ग्रंथि के अपना कर वह अपनी संस्कृति के उन्नत मार्ग पर बढ़ने के लिए तैयार हो। अगर साम्राज्यवादी शासन के लिए यह जरूरी है कि वह सांस्कृतिक उत्पीड़न करे तो राष्ट्रीय मुक्ति के लिए भी जरूरी है कि वह मुक्ति आंदोलन को एक सांस्कृतिक कर्म समझे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन संघर्ष कर रही जनता की संस्कृति की संगठित राजनीतिक अभिव्यक्ति है।

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