Thursday 16 May 2013

संध्या डे की मेहनत को नमन



पटना राजधानी के मीठापुर से रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाली बेहद भीड़-भाड़ वाली सड़क के किनारे एक महिला फुटपाथ पर बैठती है। हर दिन। बीते 22 साल से यह रूटीन उस अधेड़ महिला की जिंदगी का अहम हिस्सा है। फुटपाथ पर पकौड़ी छानना और उसे बेचना।




कोलकाता से अपने माता-पिता के साथ पटना आयी इस महिला का नाम है संध्या डे। एक सरकारी स्कूल से 1978 में 11 वीं तक पढ़ाई हुई तो घर वालों ने उसी परिवार के साथ कोलकाता से नये शहर में बसे भरत डे से शादी कर दी। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। पति के पास भी कोई काम नहीं था। सवाल रोटी का था। फिर खुद को समझाया और उसी समय सड़क किनारे बैठकर दुकान खोलने का निश्चय किया। अच्छी बात यह रही कि इस काम में पति भी हाथ बंटाते रहे। कुछ साल पहले पटना नगर निगम की एक दुकान मिल गयी। दिन में संध्या दुकान चलाती हैं और दोपहर बाद सड़क पर पकौडिय़ों के साथ बैठ जाती हैं।

इस महिला के दो बच्चे हैं। बेटा है शॉलिन दे और एक बहन। बहन की शादी हो चुकी है। शॉलिन अभी एनआईआईटी के फाइनल एग्जाम की तैयारी में है। शॉलिन को उसकी मां ने कभी अपने काम में नहीं डाला। इसकी जगह वह उसे पढऩे को प्रेरित करती रहीं। मिलर हाई स्कूल से शॉलिन ने 2004 में दसवी की परीक्षा पास की और टीपीएस कॉलेज से 12 वीं। लेकिन उसके आगे का रास्ता बंद था। शॉलिन कहता है: हमें बताने वाला कोई नहीं था कि आगे क्या करना चाहिए। पैसे भी नहीं थे। इसी उधेड़बुन में चार साल निकल गये। 2010 में मां ने कुछ पैसे जमा कर लिये थे। उससे एडमिशन हुआ। अब उसकी तैयारी एमबीए करने की है।

शुभकामनायें 

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