पालम कल्याणासुंदरम
त्याग और मानव सेवा तथा उत्थान की ऐसी मिसाल हैं, जिनकी कहानी
सुनकर आंखें छलक आती हैं। कल्याणासुंदरम तमिलनाडु राज्य के थूथुकुड़ी जिले के
श्रीवायकुंथम स्थित कुमाराकुरुपाड़ा कला महाविद्यालय में 35 साल
तक एक लाइब्रेरियन के पद पर काम करते रहे। ये लाइब्रेरी विज्ञान में गोल्ड मेडलिस्ट
हैं। इन्होंने साहित्य व इतिहास में स्नात्कोत्तर किया है। इनकी सेवा की अद्वितीय
कहानी यह है कि इन्होंने अपनी जिंदगी में पूरा का पूरा वेतन दान कर दिया।
गरीबों-मज़लूमों के बीच इन्होंने सेवा कार्य तो किया ही, बल्कि
अपनी पूरी कमाई का एक-एक पैसा आम लोगों को दे दिया। खुद जिंदा रहने के लिए
रेस्त्रां में या किसी छोटे होटल में वेटर का काम करके कम से कम पैसे कमाते थे और
एक मुट्ठी चावल और बमुश्किल सांबर बना कर खा लेते थे।
कल्याणासुंदरम जब
अपने पद से रिटायर हुए,
तो इन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट के रूप में दस लाख रुपये मिले। उन
रुपयों को भी कल्याणासुंदरम ने गरीबों को दान कर दिया। उन्होंने घोषणा कर दी है कि
वे अपना शरीर और आंख थिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज को दान करेंगे। कैंब्रिज स्थित इंटरनेशनल
बायोग्राफिकल सेंटर ने कल्याणासुंदरम को दुनिया के सबसे सज्जन आदमी में से एक की
श्रेणी में रखा है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ ने उन्हें बीसवीं सदी के
सर्वोत्कृष्ट लोगों की सूची में जगह दी है। अमेरिका की एक संस्था ने उन्हें “शताब्दी का पुरुष” (मैन ऑफ द मिलेनियन) चुना है।
यह कोई नयी
बात नहीं है मित्रो। पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से दक्षिण भारत में सम्मान के
प्रतीक के रूप में कल्याणासुंदरम का नाम लिया जाता रहा है। सन 2004 में प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक द हिंदू ने उनके बारे में बहुत
अच्छी स्टोरी की थी। जरा सोचिए, 2004 के बाद से हमने कितने
ही भ्रष्टाचारियों, चोरों, दलालों को
जान लिया – पहचान लिया, लेकिन असली
धरती पुत्र को कोई पहचानता है क्या? कृपया असली इंसानों को पहचानिए,
भ्रष्टाचारियों का सामाजिक बहिष्कार कीजिए।
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