Friday 7 March 2014

आतिफ बिलाल के ज़ज्बे को नमन

 


22 बरस के हैं आतिफ़ बिलाल. रहते भोपाल में हैं. पिछले अक्‍टूबर में एक तेज़ाब-हमले ने उनकी दोनों आखें लील ली. आतिफ़ कहते हैं, 'प्‍लीज़ माइंड मत कीजिएगा, कटी हुई उंगली का दर्द वही महसूस करता है जिसकी उंगली कटती है, बाक़ी लोगों के लिए तो वो महज़ खूं के कुछ बूंद होते हैं. उस दर्द और जलन को याद करके आज भी कभी-कभी रुलाई आ जाती है. रेसिंग मेरा मोस्‍ट फेवरेट गेम था. फैशन आज भी बहुत पसंद है मुझे... तेजाब फे कर उन्‍होंने सोचा होगा कि मेरी जिन्‍दगी बर्बाद कर देंगे. मगर ऐसा हुआ नहीं. मेरी आंखें ज़रूर चली गईं जिसका अहसास मेरे अलावा कोई और कर भी नहीं सकता. फिर भी अल्‍लाह का शुक्र है कि मेरा 'विज़न' पहले से ज्‍यादा साफ़ हुआ है. मेरे बाक़ी सेंसेंज़ पहले के मुक़ाबले ज्‍़यादा एक्टिव और असरदार हो गए हैं. मैं तो इस हालत में भी अम्‍मी को पास खड़ा करके अपने घर के आगे बाइक ड्राइव करने की कोशिश करता हूं. इंशा अल्‍लाह रौशनी लौट आएगी, फिर से रंग देख पाऊंगा.'

आतिफ़ साहब, आपके हौसले को सलाम!

https://www.facebook.com/StopAcidAttacks
 

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