क कर उन्होंने
सोचा होगा कि मेरी जिन्दगी बर्बाद कर देंगे. मगर ऐसा हुआ नहीं. मेरी आंखें
ज़रूर चली गईं जिसका अहसास मेरे अलावा कोई और कर भी नहीं सकता. फिर भी अल्लाह
का शुक्र है कि मेरा 'विज़न' पहले से ज्यादा साफ़ हुआ है. मेरे
बाक़ी सेंसेंज़ पहले के मुक़ाबले ज़्यादा एक्टिव और असरदार हो गए हैं. मैं
तो इस हालत में भी अम्मी को पास खड़ा करके अपने घर के आगे बाइक ड्राइव करने
की कोशिश करता हूं. इंशा अल्लाह रौशनी लौट आएगी, फिर से रंग देख पाऊंगा.'
आतिफ़ साहब, आपके हौसले को सलाम!
https://www.facebook.com/StopAcidAttacks
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