Monday, 24 June 2013

कार मकैनिक ने जीवन भर की कमाई से गरीबों के लिए हॉस्पिटल बनाया

एक शख्स ने जीरो से शुरुआत कर जीवन भर जी-तोड़ मेहनत करके खुद अपनी हस्ती बनाई और जब समाज को देने की बारी आई, तो वह जरा भी नहीं हिचकिचाया है। मामला है गुजरात का, जहां पर एक अनपढ़ कार मकैनिक ने अपने जीवन भर की कमाई से अपनी पुश्तैनी जमीन पर गरीबों के लिए हॉस्पिटल बना दिया। हॉस्पिटल भी ऐसा, जहां पर इलाज कराने के लिए मरीजों को उतना ही पैसा देना होगा, जितना उनका सामर्थ्य है।

अहमदाबाद के बाहरी इलाके में साणंद के पास तेलाव गांव में 'आदर्श हॉस्पिटल' नाम से हॉस्पिटल बनाने वाले मोमीन हुसैन ने 20 साल की उम्र में परिवार का पेट पालने के लिए गांव छोड़ दिया था। कुछ हफ्तों तक इधर-उधर काम की तलाश में भटकने के बाद गांधीनगर में उन्होंने गाड़ियों की रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया। 15 साल तक वहीं काम करने के बाद उन्होंने गांव लौटने का फैसला किया। जेब में 7 लाख रुपये लेकर वह गांव लौटे और यहीं पर रिपेयरिंग वर्क शुरू कर दिया। काम जम भी गया, लेकिन उनके सिर पर अपने गांव में एक हॉस्पिटल खोलने की धुन सवार थी।

मोमीन के पास कुछ पैसे थे और पुश्तैनी जमीन का एक टुकड़ा। यह प्लॉट प्राइम लोकेशन पर था और उन्हें खरीददारों से 10 करोड़ रुपये तक मिल रहे थे। वह चाहते तो आराम से इस जमीन को बेचकर आराम की जिंदगी जीते, लेकिन उन्होंने जमीन नहीं बेची। करीब 2 साल पहले 1200 स्कवॉयर यार्ड की इस जमीन पर उन्होंने हॉस्पिटल तैयार कर दिया। इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद के जाने-माने ऑर्थोपेडिक सर्जन कार्तिक शुक्ला से मुलाकात की। डॉक्टर शुक्ला ने हॉस्पिटल में सेवाएं देने के लिए हामी भर दी और सेटअप करने में मोमीन की मदद भी की। उनके साथ कुछ और डॉक्टर्स की टीम भी बिना शर्त हॉस्पिटल में सेवाएं देने के लिए तैयार हो गई। अभी एक दर्जन से ज्यादा अलग-अलग स्पेशैलिटी वाले डॉक्टर्स इस हॉस्पिटल के साथ जुड़े हैं।
शुरुआत में मोमीन नहीं चाहते थे कि इलाज के बदले मरीजों से पैसा लिया जाए, लेकिन बाद में हॉस्पिटल चलाने का खर्च निकालने के लिए यह नियम बनाया गया कि मरीज जितने पैसे देने की हैसियत रखता है, अपने मन से वह उतनी ही फीस देगा। इंग्लिश अखबार 'डेली मेल' की रिपोर्ट के मुताबिक हॉस्पिटल के हेड डॉक्टर कार्तिक शुक्ला ने बताया, 'पैसों की वजह से अक्सर गांव के लोग इलाज कराने से कतराते हैं, जिससे छोटी-छोटी बीमारियां बड़ा रूप ले लेती हैं। बाद में इससे खर्च भी ज्यादा होता है और केस भी कॉम्प्लिकेटेड हो जाता है। मगर हमारे हॉस्पिटल में पैसों की वजह से मरीजों का इलाज नहीं रुकेगा। वे अपनी हैसियत के हिसाब से पेमेंट कर सकते हैं।'
http://navbharattimes.indiatimes.com/other-cities/ahmedabad/illiterate-mechanic-builds-a-hospital-from-his-life-savings/articleshow/20523458.cms

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